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कोरोना वायरस- लॉकडाउन में निजी नर्सिंग होम व छोटे अस्पतालों पर लटके ताले

कोरोना संकट में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सक-कर्मचारी जहां दिन रात ड्यूटी कर रहे हैं, शहर के ज्यादातर निजी नर्सिंग होम, डायग्नोस्टिक सेंटर व छोटे अस्पतालों पर ताले लटके हैं। जिस कारण अन्य बीमारियों के मरीजों को उपचार व जांच के लिए भटकना पड़ रहा है। विपरीत परिस्थितियों में निजी चिकित्सालयों की यह व्यवस्था लोगों को अखर रही है। इस कारण मरीजों की भी परेशानी बढ़ गई है। उधर, निजी चिकित्सकों का कहना है कि एन-95 मास्क, पीपीई किट सहित अन्य सामान की अनुपलब्धता के कारण व संक्रमण के खतरे को देखते हुए उन्होंने सेवाएं सीमित कर ली हैं।

कोरोना संकट के कारण शहर के अधिकाश निजी अस्पतालों ने ओपीडी बंद कर दी थी। कुछ चुनिंदा सरकारी अस्पतालों में ही ओपीडी चल रही थी। इसी बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ हुई बैठक में यह सहमति बनी कि निजी अस्पताल व नर्सिंग होम अपनी ओपीडी खुली रखेंगे। सीएम का कहना था कि दून अस्पताल, एम्स ऋषिकेश, हिमालयन अस्पताल व श्रीमहंत इन्दिरेश अस्पताल जैसे बड़े अस्पतालों में मुख्यत कोरोना के मरीजों का उपचार किया जा रहा है।

इससे अन्य निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम की जिम्मेदारी कई गुणा बढ़ गई है। अस्पताल ओपीडी खुली रखें, ताकि आमजन अन्य बीमारियों की दशा में अपना इलाज सुगमता से करा सकें। पर कुछ बड़े अस्पतालों को छोड़ अन्य किसी ने इस पर अमल नहीं किया।

दैनिक जागरण की टीम ने जब हालात का जायजा लिया तो कुछेक चुनिंदा अस्पताल व नर्सिंग होम में ही ओपीडी चलती मिली। ज्यादातर छोटे अस्पतालों व नर्सिंग होम में ओपीडी बंद थी। यहीं नहीं अधिकाश डायग्नोस्टिक एवं इमेजिंग सेंटर भी बंद मिले। कुछ छोटे नर्सिंग होम खुले जरूर हैं, पर वहा भी केवल प्रसव व इमरजेंसी में पहुंचे मरीजों का ही उपचार किया जा रहा है। जबकि इस दौर में रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि के मरीजों की भी संख्या अधिक है। जिनमें कई की नियमित जांच होती है और ज्यादातर किसी एक खास डॉक्टर से ही इलाज करा रहे हैं। इसके अलावा की अन्य बीमारियों में भी एक बड़ी आबादी निजी चिकित्सक व अस्पतालों पर ही निर्भर है। ऐसे में संकट की इस घड़ी में निजी अस्पतालों पर ताला लटकना स्थिति गंभीर बना रहा है।

कुछ ही अस्पताल, नर्सिंग होम में चलती मिली ओपीडी 

दैनिक जागरण के रिपोर्टरों ने शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न अस्पतालों व नर्सिंग होम का जायजा लिया। इस दौरान श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल, सीएमआइ, सिनर्जी अस्पताल, कैलाश अस्पताल, कनिष्क अस्पताल, वोहरा मदर एंड चाइल्ड केयर हॉस्पिटल, आशीर्वाद अस्पताल, मैक्स अस्पताल, लूथरा नर्सिंग होम, रावल नर्सिंग होम समेत कई अस्पतालों में ओपीडी चलती मिली।

कहीं इमरजेंसी में उपचार, कुछ बंद 

शहर में तकरीबन 150-200 छोटे क्लीनिक व नर्सिंग होम हैं। जिनमें एक बड़ी आबादी इलाज के लिए पहुंचती है। पर अधिकाश ने खुद को प्रसव, इमरजेंसी केस तक सीमित कर लिया है। दैनिक जागरण की पड़ताल के दौरान दून नर्सिंग होम, दून ईएनटी हॉस्पिटल, चिल्ड्रन क्लीनिक समेत कुछ नर्सिंग होम खुले जरूर थे, पर यहा इमरजेंसी में पहुंचे मरीज ही देखे जा रहे थे। इसके अलावा नेगी सर्जिकल, दून वैली क्लीनिक, मानवता हॉस्पिटल, सूर्या अस्पताल समेत कई अन्य छोटे अस्पताल बंद मिलगे।

अलग फ्लू ओपीडी 

शहर के प्रमुख सरकारी चिकित्सालय दून अस्पताल, कोरोनेशन, गांधी अस्पताल में अलग से फ्लू ओपीडी चल रही है। जहां सर्दी-जुकाम, बुखार आदि के मामले देखे जा रहे हैं। इन मरीजों की ट्रेवल हिस्ट्री आदि का भी रिकॉर्ड रखा जा रहा है। मामला संदिग्ध होने पर उन्हें भर्ती होने की सलाह दी जा रही है। इसके अलावा श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल, कैलाश अस्पताल, मैक्स अस्पताल समेत अन्य बड़े प्राइवेट अस्पतालों में भी फ्लू ओपीडी की अलग व्यवस्था की गई है।

डॉ. डीडी चौधरी (प्रांतीय महासचिव आइएमए) का कहना है कि डॉक्टर का काम मरीज देखना है और उसमें किसी को आपत्ति भी नहीं है। मैं खुद मरीज देख रहा हूं, पर अपने रिस्क पर। एन-95 मास्क, पीपीई किट आदि बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में संक्रमण की आशका के बीच कोई कैसे काम करे। प्रसव, इमरजेंसी केस तो अधिकाश डॉक्टर कर रहे हैं। कुछ टेलीफोन पर परामर्श दे रहे हैं। जानबूझकर किसी को खतरे में नहीं डाला जा सकता। यह समस्या सीएम के साथ हुई बैठक में भी उठाई गई थी। पर कोई समाधान नहीं निकला।

युगल किशोर पंत (अपर सचिव स्वास्थ्य) का कहना है कि मास्क व किट की सप्लाई चेन में निरंतरता बनी हुई है। यदि किसी निजी चिकित्सक को एन-95 मास्क, पीपीई किट आदि की दिक्कत है तो हमें डिमांड दे। हम जिस दाम पर इसे क्रय कर रहे हैं उसी दाम पर उन्हें भी उपलब्ध करा देंगे। अभी तक ऐसी कोई डिमांड उनकी तरफ से नहीं आई है। डिमांड आती है, तो निश्चित ही इस पर कार्रवाई की जाएगी।

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