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उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में बर्खास्त कर्मचारियों की टूटी आखिरी उम्मीद

उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में बर्खास्त कर्मचारियों की टूटी आखिरी उम्मीद

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट से भी बर्खास्त कर्मचारियों को राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त कर्मचारियों की याचिका को निरस्त कर दिया है। सभी बर्खास्त कर्मचारी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हुए थे. विधानसभा भर्ती प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीएम धामी ने भी स्वागत किया है।

दरअसल हाईकोर्ट से विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को सही ठहराने के बाद विधानसभा से हटाए गए कर्मचारियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में एसएलपी दायर की गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने लेने से मना कर दिया है। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने एसएलपी विड्रॉल करने की बात कही है।

वहीं उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने कहा ‘मैं धन्यवाद करती हूं सर्वोच्च न्यायालय का जिन्होंने उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर लिए गए मेरे फैसले को सही ठहराया है। ये उत्तराखंड के युवाओं की जीत है।

सीएम धामी ने फैसले का किया स्वागत: विधानसभा भर्ती प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीएम धामी ने भी स्वागत किया है। सीएम धामी ने कहा जैसे ही विधानसभा में नियुक्तियों में अनियमितता की बात सामने आई, हमने विधानसभा अध्यक्ष से इसकी जांच कर आवश्यक कार्रवाई किये जाने का अनुरोध किया था। इस संबंध में गठित समिति द्वारा जब भर्तियों में अनियमितता को सही पाया गया तो हमनें तत्काल ऐसी भर्तियों को निरस्त कर दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकार की कार्रवाई को उचित माना है।

सीएम धामी ने कहा हम प्रदेश के युवाओं को आश्वस्त करते हैं कि प्रतिभावान युवाओं के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होने दिया जाएगा. समस्त रिक्त पदों पर समयबद्ध तरीके से पूर्ण पारदर्शिता से नियुक्तियां की जा रही हैं। हमने इसकी पुख्ता व्यवस्था की है। राज्य लोक सेवा आयोग को सभी भर्तियों की जिम्मेदारी दी गई है. राज्य लोक सेवा आयोग ने भर्ती कैलेण्डर जारी कर भर्तियों की प्रक्रिया प्रारंभ भी कर दी है. समस्त भर्ती प्रक्रियाओं की उच्च स्तर से मॉनिटरिंग की जा रही है।

ये था प्रकरणः उत्तराखंड विधानसभा बैक डोर भर्ती घोटाले के सामने आने के बाद भाजपा-कांग्रेस पर सवाल खड़े हो रहे थे. सवाल इस बात पर खड़े हो रहे थे कि आखिरकार पूर्व विधानसभा अध्यक्षों ने अपने लोगों को नियमों को ताक पर रखकर विधानसभा में भर्ती कैसे करवाया। इसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की 72 नियुक्तियां भी शामिल थी. सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे थे कि कैसे बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं ने नियमों के विपरीत अपने परिजनों को विधानसभा में नियुक्ति दिलवाई थी।

सीएम ने खंडूड़ी को लिखा था खतः इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था. एक महीने की जांच के बाद विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भी तत्काल एक्शन ले लिया था. लेकिन हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त किए गए 102 से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की।

सुनवाई में उनकी बर्खास्तगी के आदेश पर अग्रिम सुनवाई तक रोक लगा दी. साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ये कर्मचारी अपने पदों पर कार्य करते रहेंगे. कोर्ट के इस आदेश के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई. जितना हल्ला बर्खास्तगी को लेकर हुआ था, उसके बाद सरकार ने भी इसका खूब प्रचार-प्रसार किया. लेकिन हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की इस कार्रवाई को भी सिरे से खारिज कर दिया. आलम ये हुआ कि जिन लोगों की नियुक्तियां रद्द की गई थीं, वो दोबारा से विधानसभा की उसी पोस्ट पर बैठकर काम कर रहे थे।

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