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बांस, भीमल व पिरूल का हस्तशिल्प में किया जाय विशेष उपयोग

हमारे उत्पाद को विशिष्ट पहचान मिले, इसके लिये उत्पादों की गुणवत्ता पर दिया जाय विशेष ध्यान।

बांस, भीमल व पिरूल का हस्तशिल्प में किया जाय विशेष उपयोग।

वन पंचायतों के माध्यम से रिंगाल के उत्पादन में लायी जाय तेजी।

(विकास गर्ग)

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में सोमवार को सचिवालय में उत्तराखण्ड हथकरघा एवं हस्त शिल्प विकास परिषद के शासी निकाय की नवीं बैठक आयोजित हुई। बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि राज्य के हस्तशिल्प एवं अन्य उत्पादों की बेहतर मार्केटिंग के लिये पेशेवर डिजायनरों की सेवायें ली जाय तथा उपयुक्त स्थलों पर उत्पादों के इम्पोरियम स्थापित किये जाय। राज्य के उत्पादों के इम्पोरियम बड़े शहरों में भी स्थापित किये जायें। इसके साथ ही ऊन के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये ऊन के कलस्टर तैयार करने के भी निर्देश मुख्यमंत्री ने दिये।


मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे उत्पादों को विशिष्ट पहचान मिले, इसके लिये उत्पादों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जाय। बांस, भीमल व पिरूल का भी हस्तशिल्प में विशेष उपयोग किया जाय। वन पंचायतों के माध्यम से रिंगाल उत्पादन की दिशा में कार्य किया जाय।
बैठक में मुख्यमंत्री ने हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद् के लिये एक करोड़ की अतिरिक्त धनराशि भी स्वीकृत की। परिषद् को यह धनराशि रिवॉल्विंग फण्ड के रूप में उपलब्ध होगी। पूर्व मे इसके लिये एक करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई थी। शिल्पियों एवं बुनकरों आदि को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिये यह अतिरिक्त धनराशि स्वीकृत की गई है।


बैठक में सचिव श्री सचिन कुर्वे ने बताया कि भारत सरकार के एकीकृत हस्तशिल्प विकास एवं प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत चयनित विकास खण्डों में दो माह की डिजाइन कार्यशाला एवं 5 माह की एकीकृत डिजाइन विकास कार्यशाला, टूल वितरण, ब्रायर सेलर मीट प्रदर्शनी, राज्य स्तरीय मार्केटिंग वर्कशाप के जरिये 50 हजार शिल्पियों को लाभान्वित किया गया है, जिसमें 14 हजार बुनकर भी शामिल है। राज्य के ऐंपण काष्ठ कला, आर्टिटिस्क ऊन उत्पाद, प्राकृतिक रेशां जैसे विभिन्न शिल्पों के सर्वे एवं अध्ययन की योजना दून विश्वविद्यालय के माध्यम से पूर्ण कर ली गई है।


इसके अतिरिक्त मानव संसाधन विकास योजना के तहत कलात्मक कार्पेट का 4 माह का प्रशिक्षण उधम सिंह नगर में, काष्ठ शिल्प प्रशिक्षण श्रीनगर में तथा ऊलन क्राफ्ट का तकनीकि प्रशिक्षण धारचूला, मुन्स्यारी व नाकुरी (उत्तकाशी) में पूर्ण किया गया है। इसके साथ ही नैनीताल, उधम सिंह नगर, चमोली, उत्तरकाशी एवं पौड़ी मे 4 माह के छः तकनीकि प्रशिक्षिण कार्यक्रम भी गत वर्ष आयोजित किये गये हैं। इसके साथ ही विभिन्न जनपदों में 5 माह के 9 एकीकृत डिजाइन विकास कार्यक्रम भी आयोजित किये गये। एकीकृत हस्तशिल्प विकास एवं प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत चयनित 15 विकास खण्डो के सुविधा केन्द्रों में जूट, काष्ठ, रिगाल, ऐंपण, वूलन, ताम्र, कार्पेट, ब्लॉक प्रिन्टिंग एवं पॉटरी आदि से सम्बन्धित मशीन एवं उपकरणों की व्यवस्था की जा रही है।


उन्होंने बताया कि प्रदेश में शिल्प आधारित ग्रोथ सेन्टरों की स्थापना के अन्तर्गत ग्रोथ सेन्टरों की स्थापना के अन्तर्गत उत्तरकाशी के श्रीकोट, पुरोला में काष्ठ शिल्प, हल्द्वानी में एपण एवं जूट, घिंघराण चमोली में वूलन तथा पीपलकोटी में काष्ठ एवं रिगाल के ग्रोथ सेन्टर स्वीकृत किये गये हैं।
बैठक में हथकरघा एवं हस्तशिल्प विकास परिषद् के उपाध्यक्ष श्री रोशन लाल सेमवाल, मुख्य कार्यकारी अधिकारी बांस एवं रेशा विकास परिषद् श्री मनोज चन्द्रन, निदेशक उद्योग एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री सुधीर नौटियाल के साथ ही शासी निकाय के अन्य सदस्यगण उपस्थित थे।

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