उत्तराखंड में 80 फीसद स्कूलों की माली हालत खराब होने के कारण बंद होने की कगार पर पहुंच गए
कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट की चपेट से प्रदेश के निजी स्कूल भी नहीं बच सके हैं। निजी स्कूल संचालकों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है। इनमें करीब 80 फीसद स्कूल ऐसे हैं, जिन्हें मदद न मिली तो स्कूल बंद हो सकते हैं। यह बात प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल्स एसोसिएशन की ओर से करवाए गए सर्वे में सामने आई है।
एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से अब तक आठ महीने में निजी स्कूल बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। स्कूल के अलावा स्कूल से जुड़े व्यवसायी जिसमें राशन व्यापारी, सब्जी व्यापारी, होटल, ट्रांसपोर्ट समेत अन्य व्यवसाय भी स्कूल बंद होने से प्रभावित हुए हैं। बताया कि प्रदेशभर में 500 से ज्यादा सीबीएसई एवं सीआइसीएसई बोर्ड के स्कूल हैं, जिसमें 220 स्कूल देहरादून में ही हैं। इनमें करीब 80 फीसद स्कूल कोरोना से प्रभावित हुए हैं। अगर छात्रों ने फीस नहीं दी या सरकार ने मदद नहीं की तो ये स्कूल जल्द बंद हो जाएंगे। पांच फीसद स्कूल ऐसे हैं, जो अपनी जमा पूंजी पर कुछ समय ही चल सकेंगे। साथ ही 15 फीसद स्कूल ऐसे हैं जो शायद सभी घाटे ङोल जाएं, लेकिन उन्हें अपना सब कुछ दाव पर लगाना पड़ जाए।
कश्यप ने बताया कि लॉकडाउन लागू होने के बाद से पांच फीसद अभिभावक ही फीस दे रहे हैं। स्कूलों के पास संचालन के लिए दूसरा कोई साधन नहीं हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आवासीय स्कूल एवं इससे जुड़े अन्य व्यवसाय को अकेले अक्टूबर महीने में करीब 50 करोड़ का नुकसान हुआ है।
दिवसीय स्कूलों को भी लॉकडाउन के समय में एक हजार 80 करोड़ का नुकसान हुआ। कश्यप ने बताया कि राज्य सरकार हर साल निजी स्कूलों से करीब छह हजार करोड़ का राजस्व कमाती है। हजारों छात्र हर साल विभिन्न राज्यों और देशों से छात्र दून में पढ़ाई करने आते हैं, लेकिन इस साल यह संख्या न के बराबर रह गई है।
सरकार से मांगी सहायता
एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने कहा कि सरकार को निजी स्कूलों को कम से कम पांच साल तक बिल्डिंग, बस और पुर्निर्माण पर टैक्स में छूट देनी चाहिए। सभी अभिभावकों को पूरी फीस देने के आदेश दिए जाएं। स्कूल ट्रांसपोर्ट पर पांच साल तक रोड टैक्स न वसूला जाए। बिजली के बिल पर राहत मिले।